श्री सत्यनारायण बंसल

पूर्व अध्यक्ष

स्व. सत्यनारायण बंसल
भारतीय जनसंघ, दिल्ली प्रदेश 1975-1977

 

श्री सत्यनारायण बंसल जी का जन्म 27 सितम्बर, 1927 (अनंत चतुर्दशी) को हुआ था। उनके पिता श्री बिशनस्वरूप सामाजिक कायकर्ता तथा तथा कोयले के बड़े व्यापारी थे। सत्यनारायण जी ने बी.कॉम, एम.ए. (राजनीति शास्त्र) तथा कानून की उपाधियां प्रथम श्रेणी में प्राप्त कीं। छात्र-जीवन में क्रांतिवीर मास्टर अमीरचंद के संपर्क में आकर उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया।

सत्यनारायण जी अपने नाम के अनुरूप सदा सत्य पर अड़ जाते थे। एक बार पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास के शिव मंदिर को अंग्रेज शासन हटाना चाहता था। सत्यनारायण जी के नेतृत्व में स्थानीय लोगों ने सत्याग्रह कर उस मंदिर को बचा लिया। आज भी वह मंदिर वहां है। 1944 में वे स्वयंसेवक बने तथा 1948 में संघ पर प्रतिबंध लगने पर सत्याग्रह कर छह माह जेल में रहे। प्रतिबंध समाप्ति के बाद वे कई वर्ष तक चांदनी चौक के जिला कार्यवाह रहे। 1966 में गोहत्या बंदी आंदोलन में भी वे एक माह जेल में रहे।

संघ के साथ उन्होंने श्री वैश्य अग्रवाल पंचायत, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा, श्री धार्मिक रामलीला कमेटी, इन्द्रप्रस्थ सेवक मंडली, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, संस्कार भारती, हिन्दू शिक्षा समिति आदि में पदाधिकारी रहते हुए काम किया। उन्होंने पांच वर्ष तक ‘इतिहास’ नामक पत्रिका का सम्पादन भी किया। दिल्ली में हिन्दू हित के हर काम में वे सदा आगे रहते थे। उनके जुड़ने से उस संस्था की प्रतिष्ठा एवं विश्वसनीयता स्वयं ही बढ़ जाती थी। इसके बाद भी वे किसी संस्था से लिप्त नहीं हुये। जिस प्रसन्नता से उन्होंने जिम्मेदारी ली, समय आने पर उसी प्रकार वे उससे मुक्त भी हो गये।

सत्यनारायण जी 1969 में दिल्ली प्रदेश जनसंघ के सहमंत्री तथा फिर महामंत्री और अध्यक्ष बने। 1975 में आपातकाल लगने पर वे सत्याग्रह कर ‘मीसा’ के अन्तर्गत 19 मास बन्दी रहे। इसके बाद वे तीन वर्ष दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष तथा 1980 से 1987 तक भाजपा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे। वे धरना, प्रदर्शन, लाठी और जेल से कभी नहीं डरे। ऐसे समय में वे सबसे आगे रहकर कार्यकर्ताओं का साहस बढ़ाते थे।

1987 में वे फिर संघ में सक्रिय हुये। अब उन्हें दिल्ली प्रांत संघचालक की जिम्मेदारी दी गयी। 20 वर्ष तक उन्होंने इसे निभाया। वे कई वर्ष भारत प्रकाशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक एवं अध्यक्ष रहे, जो हिन्दी में साप्ताहिक पांचजन्य और अंग्रेजी में ऑर्गनाइजर प्रकाशित करती है। वे स्वयं अध्ययनशील थे तथा सब कार्यकर्ताओं से खूब पढ़ने का आग्रह करते थे।
सत्यनारायण जी व्यक्ति के नहीं, अपितु संघ के प्रति निष्ठावान थे। जब वे स्वयंसेवक बने, उन दिनों श्री वसंतराव ओक प्रांत प्रचारक थे, जो आगे चलकर किसी कारण संघ से अलग हो गये; पर सत्यनारायण जी ने संघ नहीं छोड़ा। वे दिल्ली के चप्पे-चप्पे से परिचित थे। कार्यकर्ता को उनके पास बैठते ही इसका अनुभव होता था। वे कार्यकर्ता के मन को समझने और संभालने पर बहुत जोर देते थे। इसके लिये वे उनसे घर-परिवार और कारोबार आदि के बारे में भी खूब चर्चा करते थे। उनका मत था कि यदि कार्यकर्ता का मन ठीक रहा, तो वह संघ का काम किये बिना रह ही नहीं सकता।

आंखें खराब होने से जब उनके लिये कहीं जाना कठिन हो गया, तब भी वे कार्यकर्ताओं को घर बुलाकर उन्हें अपने अनुभव से लाभान्वित करते रहते थे। 19 फरवरी, 2011 को उनका देहांत हुआ। उनकी श्रद्धांजलि सभा में परम पूज्य सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि उनके नाम के साथ कोई और विशेषण लगाने की आवश्यकता नहीं है। वे स्वयंसेवक थे, यह कहना ही पर्याप्त है।