बलराज मधोक का जन्म 25 फ़रवरी 1920 को जम्मू एवं काश्मीर राज्य के अस्कार्डू में हुआ था। उनका परिवार मूलतः जम्मू का एक खत्री परिवार था जो आर्य समाज से निकट से जुड़ा हुआ था। उनके पिता जगन्नाथ मधोक पश्चिमी पंजाब के गुजरवालां जिले के जालेन के रहने वाले थे। वे जम्मू कश्मीर रियासत के लद्दाख डिविजन में एक कर्मचारी थे। बलराज मधोक का बचपन जालेन में बीता, उच्च शिक्षा लाहौर विश्वविद्यालय के दयानन्द ऐंग्लो-वैदिक कॉलेज में हुई। उन्होने 1940 में इतिहास में हॉनर्स के साथ बीए किया। विनायक दामोदर सावरकर, भगत सिंह और मदन लाल ढींगरा उनके आदर्श थे। सन 1938 में 18 वर्ष की आयु में अपने छात्रजीवन में ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क में आये जिसे वे आर्य समाज के विचारों के निकट समझते थे। सन 1942 में भारतीय सेना में सेवा (कमीशन) का प्रस्ताव ठुकराते हुए उन्होने आर एस एस के प्रचारक के रूप में देश की सेवा करने का व्रत लिया। 1942 में उन्हें जम्मू में आरएसएस के प्रचारक का दायित्व सौंपा गया। लगभग 8 मास तक इस कार्य को करते हुए उन्होने संघ का एक नेटवर्क खड़ा किया उसके बाद 1944 मे सिर्फ 24 वर्ष की आयु में श्रीनगर के डीएवी पोस्ट ग्रेजुएट कालेज में इतिहास के व्याख्याता बनाए गए। यहाँ भी उन्होने संघ कार्य जारी रखा। उन्होनें कश्मीर घाटी में संघ का नेटवर्क खड़ा किया।
अगस्त 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान का षडयंत्र पूरे उफान पर था । जवाहर लाल नेहरू, शेख अब्दुल्ला की मोहब्बत में गिरफ्तार थे। जिन्ना की हार्दिक इच्छा थी कि सम्पूर्ण कश्मीर पर पाकिस्तान का शासन हो। वे जम्मू कश्मीर के डोगरा हिन्दू शासक को पदच्युत कर घाटी में इस्लामी शासन की स्थापना करना चाहते थे। पाकिस्तान से भागकर आने वाले हिन्दू शरणार्थी कुछ श्रीनगर भी आए। कुछ संघ की शाखाओं में भी आने लगे। इन लोगों से मधोक ने गुप्त सूचना एकत्र की जिससे पता चला पाकिस्तान 21 अक्टूबर को कश्मीर पर आक्रमण की योजना बना रहा है। यह सूचना उन्होने अधिकारियों को भी बता दी। महाराजा के कहने पर मधोक ने 23 अक्टूबर को श्रीनगर हवाई अड्डे की रक्षा के लिए 200 स्वयंसेवक तैयार किए। समय आने पर ये स्वयंसेवक बहुत काम आए। 1948 में मधोक दिल्ली आ गए और पंजाब विश्वविद्यालय कॉलेज में शिक्षण करने लगे जो पंजाब से आए शरणार्थियों की शिक्षा के लिए स्थापित किया गया था। बाद में वे दिल्ली विश्वविद्यालय से सम्बद्ध डीएवी कॉलेज में इतिहास के प्रवक्ता बन गए।
1949 में उन्होने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना की जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विद्यार्थियों का संगठन है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना की तब मधोक उनके सम्पर्क में आए और पार्टी के प्रचार और विकास में हाथ बंटाया। उन्हें पार्टी का संस्थापक सचिव बनाया गया।
दिल्ली और पंजाब में पार्टी को बढ़ाने का काम मधोक को सौंपा गया। उन्होंने दोनों जगह जनसंघ की राज्य इकाई की स्थापना की। इसी साल मधोक ने आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी की स्थापना भी की। इसके बाद मधोक निरन्तर बढ़ते रहे। मधोक 1961 में नई दिल्ली से लोकसभा का चुनाव जीते।
वर्ष 1966 में उन्हें भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष बना दिया गया। 1967 में उन्हीं के नेतृत्व में पहली बार पार्टी ने देशभर में चुनाव लड़ा और 35 सीटें जीतीं। वह खुद भी दूसरी बार दिल्ली से सांसद बने। दिल्ली में जनसंघ ने सात में से छह सीटें जीती थीं, उन्होंने उन जगहों पर जीत हासिल की थीं जहाँ कोई उम्मीद नहीं कर सकता था। यही नहीं, पंजाब में जनसंघ की संयुक्त सरकार बनी थी और उत्तर प्रदेश और राजस्थान सहित आठ प्रमुख राज्यों में जनसंघ मुख्य विपक्षी दल बनने में सफल हुआ था। इसी के बाद ही जनसंघ की विपक्षी दल के तौर पर पुख्ता पहचान बनी।
प्रोफेसर बलराज मधोक ने कमला के साथ विवाह किया जो दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थीं। उनकी दो पुत्रियाँ हैं। अपनी उम्र के अन्तिम दशक में वे उतने सक्रिय तो नहीं रह गये थे किन्तु बीच-बीच में वे न्यू राजेन्द्र नगर आर्य समाज के कार्यक्रमों भाग लेते रहते थे। वे अपनी पुत्रियों के साथ रहते थे। उनका ज्यादातर समय पुस्तकें पढ़ने में ही गुजरता था।
अपने अन्तिम दिनों में वे बीमार चल रहे थे और उन्हें नयी दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में भरती कराया गया था। 2 मई 2016 को उनका निधन हो गया। उनके निधन पर भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और लालकृष्ण आडवानी सहित अनेक गणमान्य व्यक्तियों ने संवेदना व्यक्त की थी। नरेन्द्र मोदी उनके अन्तिम दर्शन के लिए उनके घर गए थे।